ममता-मुक्त बंगाल

 

1

प्रसिद्ध चिकत्सक, परोपकारी एवं स्वतंत्रता संग्रामी राधा गोविंद कर जी की आत्मा पर महिला अस्मिता के मर्दन से पूरा भारतीय समाज रक्तद्रवित है। बहन निर्भया के आंसू का ताप मध्यमित भी नहीं हुआ था कि पश्चिम बंगाल के आर जी कर मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर बहन के साथ घटित घटना से हृदय उद्वेलित है, पांव ठिठुराघातित है एवं आंख रक्तरंजित है। 

सभ्य मानव समाज में महिला अस्मिता के इस चीरहरण के लिए हम सब सामूहिक रूप से नैतिक जिम्मेदार हैं। हमारी   सामूहिक नैतिक जिम्मेदारी इस लिए है क्योंकि हम उस सामाजिक वातावरण को निर्माण करने में विफल रहे जो आर जी कर मेडिकल कॉलेज की घटना को जन्म देने से रोक सकता था। 

पूरा भारतीय समाज सामूहिक रूप से नैतिक जिम्मेदार हो सकता है परंतु उस व्यक्तिगत एवं संस्थागत कानूनी जिम्मेदारी का क्या? ममता सरकार का क्या? उनके पुलिस प्रशासन का क्या? आर जी कर मेडिकल कॉलेज के प्रशासन का क्या? क्या सब के सब इतने निष्ठुर बन चुके हैं? उस चित्कार का क्या, उस रक्तस्राव का क्या, पांव के उस 90 डिग्री कोण का क्या, जो हमारी बहन गुलजार के शब्दों के माध्यम से हमसे पूछ रही है:

1

हम अपनी पैरों में जाने कितने,

भंवर लपेटे हुए पड़े हैं। 

कहीं किसी रोज यूं भी होता,

हमारी हालत तुम्हारी होती।

जो रात हमने गुजारी मर के,

वो रात तुमने गुजारी होती। 

नारी शक्ति की उपासना के तीर्थस्थल बंगाल की भूमि में आए दिन सुनियोजित ढंग से माताओं एवं बहनों की अस्मिता को लूटने का काम किया जा रहा है। शर्म एवं चिंता की बात तो यह है कि अधिकांश मामलों में उस सरकार की संलिप्तता पाई जा रही है जिसकी मुखिया स्वयं एक महिला हैं, जो राज्य की मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ राज्य की गृह मंत्री एवं स्वास्थ्य मंत्री के पद पर भी आधिपत्य जमाए बैठी हुई हैं। तृणमूल कांग्रेस द्वारा नारी वेदना को नौटंकी की संज्ञा देने, उसके चरित्र पर प्रश्न उठाने एवं उसे सत्ता के भोग की वस्तु समझने का ही परिणाम है आर जी कर मेडिकल कॉलेज की घटना। इन परिस्थिति में उस डॉक्टर बहन की यह आशा कि राज्य में वो सुरक्षित है, उनकी अस्मिता की रक्षा राज्य सरकार करेगी एवं विपत्ति में इस द्रौपदी को बचाने कोई कृष्ण आएगा ये सब आज बेमानी लग रही होगी। बेबसी में उनकी आत्मा आज गुलज़ार के उन शब्दों को बुदबुदा रही होगी कि: 

उन्हें ये जिद्द थी कि हम बुलाते,

हमें ये उम्मीद वो पुकारें।

है नाम होठों पर अब भी लेकिन,

आवाज में पड़ गईं दरारें। 

हजार राहें मुड़ के देखी,

कहीं से कोई सदा ना आई। 

1

वस्तुतः, ममता सरकार की एक-एक सांस उस डॉक्टर बहन की एक-एक आह, एक-एक चीख, एक-एक डर, एक-एक आंसू एवं एक-एक रक्त से अभिशापित है जो विपत्ति की उस घड़ी में बहन को दैत्य की कामुकता व दैत्यता का आहार बनने दिया। यह सोच से परे है कि डॉक्टर बहन के शरीरांग का 90 डिग्री दृश्य तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को अपनी पांव पसारकर कैसे सोने दे रही होगी? क्या ममता सरकार को महर्षि दधीचि की इस धरती में 'देहदान' की स्थापित परंपरा को 'देहपान' में कुपरिवर्तित करते शर्म नहीं आई? 

हमें यह चिंता है कि सालों-साल बंगाल को नारी अस्मिता के प्राचल से कंगाल रखने वाली ममता सरकार आज राज्य में न्यूनतम कानून-व्यवस्था को भी अधिष्ठापित करने में विफल हो चुकी है। रक्त की आहार करने वाली इस पिशाचनी सरकार को कब तक भारत की जनता आलिंगित करती रहेगी? महिला शोषण का इतिहास रखने वाले व्यक्ति को 'सिविक वॉलंटियर' के छद्म नाम से नौकरी देने एवं उससे महिला शोषण का काम करवाने वाली ममता सरकार को क्या शर्म नहीं आती? 

हिंदुस्तान में रजाकारों की स्थापित पार्टी तृणमूल कांग्रेस के द्वारा महिला उत्पीड़न के विरोध में आयोजित देशव्यापी विरोध प्रदर्शन को कुनामित करने एवं उन पर बल-प्रदर्शन के प्रयास को सुदर्शन फाकिर के दर्द (संशोधित) से समझा जा सकता है: 

1

"पत्थर के खुदा, पत्थर के सनम, पत्थर के ही इंसा पाएं हैं।

तुम सरकार-ए-मुहब्बत कहते हो, हम जान बचाकर आएं हैं।।"

पश्चिम बंगाल ना तो आज माताओं-बहनों के लिए सुरक्षित है, और ना ही उन नागरिकों के लिए जो उन माताओं-बहनों की अस्मिता की रक्षा हेतु उनकी आवाज़ बनकर सड़क पर उतरे हैं। संदेशखली की महिलाएं आज तक न्याय की आस में आंख खोल कर सोने को विवश हैं। 

आर जी कर मेडिकल कॉलेज की घटना एक बानगी मात्रा है। प्रतिदिन बंगाल की माताओं का शारीरिक शोषण राज्य की सत्ता संरक्षित गुंडों के द्वारा किया जा रहा है। एक घटना की जांच को सीबीआई के हाथों में सौंपने से बंगाल की माताओं बहनों का शोषण नहीं रोका जा सकता। राज्य की सत्ता का चरित्र ही महिला शोषण का है। कातिल ही जब मुंसिब होगा तो न्याय की आशा बेमानी है। आज बंगाल का एक-एक बच्चा, एक-एक माता, एक-एक बहन चीख-चीख कर सुदर्शन फाकिर के शब्दों के माध्यम से भारत सरकार से गुहार लगा रही है कि: 

हमसे पूछो ना दोस्ती का सिला।

दुश्मनों का भी दिल हिला देगा।।

मेरा कातिल ही मेरा मुंसिब है।

क्या मेरे हक में फ़ैसला देगा।।

भारत सरकार से मेरी गुजारिश है कि पश्चिम बंगाल की माताओं, बहनों, बच्चों, छात्रों एवं नागरिकों के दर्द को महसूस करे और उन्हें तृणमूल कांग्रेस के शोषण तथा तानाशाही से निजात दिलाए। आज वो वक्त आ गया है कि भारत सरकार संविधान प्रदत्त शक्तियों का उपयोग कर पश्चिम बंगाल की निवर्तमान सरकार को बर्खास्त कर राज्य में कानून व्यवस्था की पुनर्स्थापना करे।

 

(याज्ञवल्क्य शुक्ल, राष्ट्रीय महामंत्री - अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद)